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ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जो नज़र बचा के गुज़र गए तो न आ सकोगे पलट के तुम
बड़ी मोहतरम है ये बेबसी कि ख़ुलूस-ए-जाँ का लिबादा है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जो नज़र बचा के गुज़र गए तो न आ सकोगे पलट के तुम
बड़ी मोहतरम है ये बेबसी कि ख़ुलूस-ए-जाँ का लिबादा है