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ग़ज़ल
जाने बस्ती का वो इक मोड़ था क्या उस के लिए
शाम ढलते ही वहाँ शम्अ' जला देता था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
'बानी' ज़रा सँभल के मोहब्बत का मोड़ काट
इक हादसा भी ताक में होगा यहीं कहीं