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ग़ज़ल
ये कामिल यक़ीं है कि जिस दिन भी अपने मुक़ाबिल में आया
मिरी ज़ात में मोरचा-बंद ख़ुद-सर मुझे मार देंगे
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
कई लोग मोरचा-बंद ख़ौफ़ की रेत में हैं करम करम
तिरे हाथ में ये जो संग है किसी सम्त उस को उछाल भी
तनवीर मोनिस
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा
इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहीं कहीं से कुछ मिसरे एक-आध ग़ज़ल कुछ शेर
इस पूँजी पर कितना शोर मचा सकता था मैं