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ग़ज़ल
मैं तो ख़ुद इक पेड़ घना हूँ ये है कैसे मुमकिन
छोटे मोटे पौदों के मैं साए में दब जाऊँ
मुनव्वर हाशमी
ग़ज़ल
आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर
क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बस एक मोती सी छब दिखा कर बस एक मीठी सी धुन सुना कर
सितारा-ए-शाम बन के आया ब-रंग-ए-ख़्वाब-ए-सहर गया वो
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
बर्ग-ए-गुल पर रख गई शबनम का मोती बाद-ए-सुब्ह
और चमकाती है उस मोती को सूरज की किरन