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ग़ज़ल
मेरे सीने में धड़कता है दिल-ए-अस्र-ए-रवाँ
इस ज़माने का मुफ़स्सिर हूँ नुमाइंदा हूँ मैं
ख़ावर रिज़वी
ग़ज़ल
मिरे वजूद से हैरत में है मुफ़स्सिर-ए-अक़्ल
वो राज़ हूँ जो न मस्तूर है न इफ़्शा है
नज़ीर मुज़फ़्फ़रपुरी
ग़ज़ल
नहीं अहल-ए-ज़मीं पर मुनहसिर मातम शहीदों का
क़बा-ए-नील-गूँ पहने फ़ज़ा-ए-आसमाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
रोज़ ओ शब रहता है तेरी याद में आशिक़ का दिल
गो मुक़स्सिर है तिरी ख़िदमत से गो म'अज़ूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
पास था ज़ंजीर तक का तौक़ पर क्या मुनहसिर
वो किसी में अब कहाँ जो तेरे दीवाने में था