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ग़ज़ल
हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
शेयर-बाज़ार में क़ीमत उछलती गिरती रहती है
मगर ये ख़ून-ए-मुफ़्लिस है कभी महँगा नहीं होगा
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल
हम को कोई क्या दे देगा क्यूँ मुँह-देखी बात करें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मुफ़्लिस को अहल-ए-ज़र ने भी क्या क्या दिए फ़रेब
अपनी जफ़ा का हुक्म-ए-ख़ुदा नाम रख दिया
गोपाल मित्तल
ग़ज़ल
तवंगर था बनी थी जब तक उस महबूब-ए-आलम से
मैं मुफ़्लिस हो गया जिस रोज़ से वो सीम-तन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
दिल ग़नी हो तो हर इक रंज भी दिल की राहत
ज़ेहन मुफ़्लिस हो तो हर सूद ज़ियाँ होता है