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ग़ज़ल
सब्ज़ गुम्बद की घनी छाँव जो हो जाए नसीब
'मुफ़्ती'-ए-शहर कभी ख़्वाहिश-ए-जन्नत न करे
सय्यद अब्दुस सत्तार मुफ़्ती
ग़ज़ल
हम ने उड़ना है 'मुफ़्ती' उड़ेंगे ज़रूर
रेज़िश-ए-बाल-ओ-पर हम नहीं जानते
सय्यद अब्दुस सत्तार मुफ़्ती
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हाँ यही शख़्स गुदाज़ और नाज़ुक होंटों पर मुस्कान लिए
ऐ दिल अपने हाथ लगाते पत्थर का बन जाएगा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ दिल तमाम नफ़अ है सौदा-ए-इश्क़ में
इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
शब उस को हाल-ए-दिल ने जताया कुछ इस तरह
हैं लब तो क्या निगह भी हुई तर्जुमाँ नहीं
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ग़ज़ल
आने से ख़त के जाते रहे वो बिगाड़ सब
बन आई अब तो हज़रत-ए-दिल लो ख़िज़्र मिले