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ग़ज़ल
गर तिरे दिल में हो ख़याल वस्ल में शौक़ का ज़वाल
मौज मुहीत-ए-आब में मारे है दस्त-ओ-पा कि यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तेरे मुहीत में कहीं गौहर-ए-ज़ि़ंदगी नहीं
ढूँड चुका मैं मौज मौज देख चुका सदफ़ सदफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वो नज़र बहम न पहुँची कि मुहीत-ए-हुस्न करते
तिरी दीद के वसीले ख़द-ओ-ख़ाल तक न पहुँचे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मुहीत-ए-इश्क़ की हर मौज तूफ़ाँ-ख़ेज़ ऐसी है
वो हैं गिर्दाब में जो दामन-ए-साहिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
शोरिश-ए-बातिन के हैं अहबाब मुंकिर वर्ना याँ
दिल मुहीत-ए-गिर्या ओ लब आशना-ए-ख़ंदा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
ता-मुहीत-ए-बादा सूरत ख़ाना-ए-ख़म्याज़ा था