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ग़ज़ल
मेरी जानिब है मुख़ातिब ख़ास कर वो चश्म-ए-नाज़
अब तो करनी ही पड़ेगी दिल की क़ुर्बानी मुझे
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
शब भर हर इक ख़याल मुख़ातिब मुझी से था
तन्हाइयों में रौनक़-ए-महफ़िल भी मैं ही था
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
इम्कान से ख़ारिज है कि हूँ तुझ से मुख़ातिब
हमनाम को भी तेरे पुकारा न करेंगे