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ग़ज़ल
यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले
मैं मसर्रतों में गुम था तिरी दोस्ती से पहले
अफ़रोज़ आलम
ग़ज़ल
मुख़बिरी मेरी हुई चश्म-ए-ज़दन में कैसी
क़स्र-ए-दिल ही में सारा था कि मिस्मार हुआ
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
न जाने किस ने 'मुज़फ़्फ़र' की मुख़्बिरी की है
तिरे सिवा तो किसी और को न था मा'लूम