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ग़ज़ल
उफ़ ये सन्नाटा कि आहट तक न हो जिस में मुख़िल
ज़िंदगी में इस क़दर हम ने सुकूँ पाया न था
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
न हो मुख़िल मिरे अंदर की एक दुनिया में
बड़ी ख़ुशी से बर-ओ-बहर पर हुकूमत कर
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
शाद लखनवी
ग़ज़ल
तुम्हें हसरत से हम देखेंगे और तुम मुस्कुराना
उस इक लम्हे में जब आ कर मुख़िल हो जाएगा ग़म
कामरान नफ़ीस
ग़ज़ल
पाता हूँ मैं जहाँ उसे होते हैं वाँ मुख़िल
हैराँ हूँ अब कि राज़-ए-दिल उस से कहाँ कहूँ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
परिंदे फिर भी फ़ज़ा में थे पर समेटे हुए
'ज़फ़र' मुख़िल कोई उन की उड़ान में भी न था