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ग़ज़ल
मैं वफ़ाओं का हूँ पैकर मिरा जज़्ब-ए-मुख़्लिसाना
मुझे आज़मा ले हमदम जो तू चाहे आज़माना
दानिश फ़राही
ग़ज़ल
तिरी मस्लहत पे हमदम मुझे शक नहीं है लेकिन
ये फ़रेब-ए-मुख़्लिसाना तो जवाब-ए-ग़म नहीं है