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ग़ज़ल
अगर मुनकर नकीर आते हैं तुर्बत में तो आ जाएँ
न छेड़ें वो मुझे मह्व-ए-जमाल-ए-यार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
जवाब देना चाहे गर तू मुनकर-ओ-नकीर को
तू फ़िक्र-ए-आख़िरत में अपने आप को निचोड़ तो
गुलज़ार मुरादाबादी
ग़ज़ल
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई