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ग़ज़ल
मैं हूँ वो गुमनाम जब दफ़्तर में नाम आया मिरा
रह गया बस मुंशी-ए-क़ुदरत जगह वाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
आप को देखूँ ख़ुदा वो दिन न दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
बढ़ गई मय पीने से दिल की तमन्ना और भी
सदक़ा अपना साक़िया यक जाम-ए-सहबा और भी
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते
मुँह की इक दिन खाएँगे अग़्यार हँसते बोलते
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
मुजस्सम दाग़-ए-हसरत हूँ सरापा नक़्श-ए-इबरत का
मुझे देखो कि होता है यही अंजाम उल्फ़त का
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
रूठोगे बे-सबब तो मनाया न जाएगा
बेजा तुम्हारा नाज़ उठाया न जाएगा
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा
जी भर आया दीदा-ए-सोज़न लहू रोने लगा
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ये हिजाब-ए-जिस्म-ए-ख़ाकी कि है दीद का मुनाफ़ी
कभी दरमियाँ से उठता तो विसाल-ए-यार होता
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का
अच्छा कोई फिर क्यूँ हो मसीहा मिरे दिल का
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
कहने सुनने से मिरी उन की 'अदावत हो गई
जो न होनी थी वो ग़ैरों की बदौलत हो गई
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
रहबर जौनपूरी
ग़ज़ल
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
मुझ से दम ले लो अगर तेग़-ए-सितम में दम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ग़ैब से सहरा-नवरदों का मुदावा हो गया
दामन-ए-दश्त-ए-जुनूँ ज़ख़्मों का फाहा हो गया
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
उस ने मय पी के सर-ए-बज़्म जो साग़र उल्टा
वरक़-ए-अंजुमन-ए-दहर सरासर उल्टा
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
वस्ल में बिगड़े बने यार के अक्सर गेसू
उलझे सुलझे मिरी तक़दीर से शब भर गेसू