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ग़ज़ल
उम्र बाक़ी राह-ए-जानाँ में बसर होने को है
आज अपनी सख़्त-जानी संग-ए-दर होने को है
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
ख़ुद-बख़ुद जोश-ए-मय-ए-नाब से शीशा उट्ठा
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
बुतों के घर की तरफ़ काबे के सफ़र से फिरे
हज़ार शुक्र कि जीते ख़ुदा के घर से फिरे
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
मैं गोर में चराग़-ए-सर-ए-शाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
मुर्ग़ान-ए-क़ुद्स के लिए गुल-दाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हाल-ए-पोशीदा खुला सामान-ए-इबरत देख कर
पढ़ लिया क़िस्मत का लिक्खा लौह-ए-तुर्बत देख कर
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का
ज़ुल्फ़-ए-जानाँ में है आलम सुब्हा-ए-सीमाब का