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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लफ़्ज़ की हुरमत मुक़द्दम है दिल-ओ-जाँ से मुझे
सच त'आरुफ़ है मिरे हर शे'र हर तहरीर का
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
हुसूल-ए-मंफ़अत अपनी निगाहों में मुक़द्दम है
इन्हीं वज्हों से इज़हार-ए-हक़ीक़त हम नहीं करते
रफ़ीक़ अंजुम
ग़ज़ल
मोहब्बत की वो तख़्ती जिस पे अपने नाम लिक्खे थे
इसे रखना मुक़द्दम तुम कभी इस को मिटाना मत
नासिर मारूफ़
ग़ज़ल
वो हुक्म कि है अक़्ल-ओ-अक़ीदे पे मुक़द्दम
छुटने ही नहीं देता मुक़द्दर का अंधेरा
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
मौत का आना मुक़द्दम है बशर के वास्ते
और मैं कुछ कह नहीं सकता तिरी ताख़ीर को