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ग़ज़ल
अक्स उस बे-दीद का तो मुत्तसिल पड़ता था सुब्ह
दिन चढ़े क्या जानूँ आईने की क्या सूरत हुई
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
सख़्त सही हस्ती के मराहिल-ए-इश्क़ में राहत आज भी है
ऐ ग़म-ए-जानाँ हो न गुरेज़ाँ तेरी ज़रूरत आज भी है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
ख़ौफ़ का कोई निशाँ ज़ाहिर नहीं अफ़आ'ल में
गो कि दिल में मुत्तसिल ख़ौफ़-ए-ख़ुदा पाते हैं हम