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ग़ज़ल
कीजिए सेहर-बयानी से मुसख़्ख़र क्यूँ-कर
कभी सुनता नहीं 'नासिख़' वो हमारी बातें
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
'जलील' आख़िर जो की है शायरी कुछ काम भी निकले
किसी बुत को मुसख़्ख़र कीजिए मोजिज़-बयाँ हो कर
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
हसीं पढ़ कर ग़ज़ल मेरी मिरे मुश्ताक़ होते हैं
मुसख़्ख़र दिल को करता है कलाम-ए-आशिक़ाना भी
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
आ गया दिल में जो आलम का मुसख़्ख़र करना
ज़ुल्फ़ को चेहरे पे हंगाम-ए-सहर छोड़ दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
मुसतफ़ा राही
ग़ज़ल
गर मुसख़्ख़र होवे वो ख़ुर्शीद-रू मेरा 'बयाँ'
बादशाही क्या कि मैं दावा ख़ुदाई का करूँ
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
ग़ज़ल
दावत से मुसख़्ख़र हो न ताअत से मयस्सर
हूँ जिस पे फ़िदा वो परी-ओ-हूर नहीं है
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
मुसख़्ख़र कर लिया इंसाँ ने उजलत में सितारों को
मोहब्बत मर रही है आगही का रक़्स जारी है