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ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक
करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं
लेकिन हवा के रहम-ओ-करम पर नहीं हूँ मैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
है मौज-ए-बहर-ए-इश्क़ वो तूफ़ाँ कि अल-हफ़ीज़
बेचारा मुश्त-ए-ख़ाक था इंसान बह गया
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी
इस एक मुश्त-ए-ख़ाक को ग़म दो-जहाँ के हैं