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ग़ज़ल
बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
दोस्तो मेरे दुखों को मुश्तहर करते हो क्यूँ
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
मुंतशिर चलिए कि यूँ बाज़ार भर जाता तो है
मुश्तहर कीजे कि फिर अच्छा गुज़र जाता है दिन
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
यक़ीं है उस को सिला ख़ूब पाऊँगा अब तो
वो जाँ भी लेता है और मुश्तहर भी करता है