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ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
मुनाफ़ा मुश्तरक है और ख़सारे एक जैसे हैं
कि हम दोनों की क़िस्मत के सितारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
फ़क़त एक रिश्ता-ए-मुश्तरक ख़लिश-ए-सुकूत-ए-कलाम है
यूँही इक ज़माना गुज़र गया न पयाम है न सलाम है
सिराज लखनवी
ग़ज़ल
ता-उम्र तेरे नाम से लिक्खूँ ग़ज़ल ग़ज़ल
इक दर्द-ए-मुश्तरक का सुख़न दरमियाँ है 'ज़ेब'
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
हमारे दरमियाँ ये दुख ही क़द्र-ए-मुश्तरक हैं
सो हम को इजतिमाई ख़ुद-कुशी करनी पड़ेगी
रख़्शंदा नवेद
ग़ज़ल
वो आलमगीर जल्वा और हुस्न-ए-मुश्तरक तेरा
ख़ुदा जाने इन आँखों को हुआ किस किस पे शक तेरा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बिगड़ती है कभी क़िस्मत कभी बीवी कभी मोटर
यक़ीनन मुश्तरक है कोई सी इक चीज़ तीनों में