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ग़ज़ल
मगर हम मुसिर थे कि हम ने किताबें बहुत पढ़ रखी हैं
बड़ों ने कहा भी कि देखो मियाँ तजरबा तजरबा है
जव्वाद शैख़
ग़ज़ल
मरकज़-ए-शहर में रहने पे मुसिर थी ख़िल्क़त
और मैं वाबस्ता तिरे दिल के मज़ाफ़ात से था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
बहुत दिन से मुसिर इस बात पर वो मेहरबाँ है
कि मैं दिल को रहीन-ए-सोहबत-ए-नाशाद कर दूँ
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
बड़ी ही नरमी से उस की आँखें मुसिर हुई थीं
हम उस के दामन में अपना सारा ग़ुबार रख दें
शमीम अब्बास
ग़ज़ल
सफ़र पे यूँ मुसिर हूँ मैं कि हौसलों में जान है
जो लुट चुका यक़ीन था जो बच गया गुमान है
निज़ामुद्दीन निज़ाम
ग़ज़ल
मुसिर है 'अक़्ल कि मंतिक़ में आए उक़्दा-ए-जाँ
क़दम क़दम पे मगर दिल बशारतें माँगे