आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mustaqbil"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mustaqbil"
ग़ज़ल
क्या मुनज्जिम से करें हम अपने मुस्तक़बिल की बात
हाल के बारे में हम को कौन सा मालूम है
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
हाल ख़ूँ में डूबा है कल न जाने क्या होगा
अब ये ख़ौफ़-ए-मुस्तक़बिल ज़ेहन ज़ेहन तारी है
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
अगर माज़ी मुनव्वर था कभी तो हम न थे हाज़िर
जो मुस्तक़बिल कभी होगा दरख़्शाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
ग़ज़ल
मस्त है हाल में दिल बे-ख़बर-ए-मुस्तक़बिल
सोचता हूँ उसे हुश्यार करूँ या न करूँ
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
जश्न-ए-फ़र्दा के तसव्वुर से लहू गर्दिश में है
हाल में हूँ और ज़िंदा अपने मुस्तक़बिल में हूँ
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
इसी इक जुर्म पर अग़्यार में बरपा क़यामत है
कि हम बेदार हैं और अपना मुस्तक़बिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इंसान का रौशन मुस्तक़बिल जिस वक़्त चराग़-ए-राह बना
हर मंज़िल अपने क़दमों से तारीख़ का नाता जोड़ गई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
वो जिस के नाम से रौशन थे मुस्तक़बिल के सब ख़्वाब
वही चेहरा हमें ना-मो'तबर क्यूँ लग रहा है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
तय हुआ नज़्म ही मुस्तक़बिल है पान-सौ बिल है भई प्यारो
आँख न मारो ग़ज़ल हमारे हसब-नसब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
जहाँ से हूँ यहाँ आया वहाँ जाऊँगा आख़िर को
मिरा ये हाल है यारो न मुस्तक़बिल न माज़ी हूँ
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
ग़ज़ल
मुस्तक़बिल से आस बहुत है मुस्तक़िल कैसा भी हो
माज़ी किस के काम आया है माज़ी को दोहराएँ क्यूँ