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ग़ज़ल
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़
चीरे है सीना रात को ये मू-शिगाफ़-ए-ज़ुल्फ़
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बस-कि हर-यक-मू-ए-ज़ुल्फ़-अफ़्शाँ से है तार-ए-शुआअ'
पंजा-ए-ख़ुर्शीद को समझे हैं दस्त-ए-शाना हम
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ख़्मों के मुँह शिगाफ़ हुए बू-ए-ज़ुल्फ़ से
रखता है मुश्क मरहम-ए-तेज़ाब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
हमारे हाथ इक मू गई नईं और पेच खाती है
वो दाम-ए-ज़ुल्फ़ में ताज़ा शिकार-ए-दिल फँसा शायद
वली उज़लत
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ले जा चुकी चमन में सबा बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
सुम्बुल के सिलसिले को भी बरहम वो मू करें
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
नाज़-ए-आज़ादी 'हसन' वज्ह-ए-असीरी हो गया
मू-कशाँ दिल को ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-पैमाँ ले चला
हसन बरेलवी
ग़ज़ल
मू-ब-मू क्यूँ-कर न हो मुझ को गिरफ़्तारी-ए-ज़ुल्फ़
काफ़िर-ए-इश्क़-ए-बुताँ मैं एक और ज़ुन्नार सौ
सैय्यद मोहम्मद मीर असर
ग़ज़ल
गर तू सुने तो सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ के असीर
शरह-ए-नियाज़-मंदी-ए-दिल मू-ब-मू करें
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
रश्क-ए-सुम्बुल है तिरी ज़ुल्फ़ परेशाँ हम हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
खुली न ज़ुल्फ़ पे कुछ भी मिरी परेशानी
बना हज़ार ज़बाँ अर्ज़मू-ब-मूमू-ब-मू के लिए
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
हुस्न के डंके की धूम जग में पड़ी जा-ब-जा
क्यूँ न बजे दिल मने इश्क़ की नौबत सदा