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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फ़ना के बह्र-ए-क़ुल्ज़ुम मूं पड़ा ये दिल गया गुज़रा
न जागे रोज़-ए-महशर के उसे फिर क्या जगाना है
ग़ुलाम क़दीर शाह
ग़ज़ल
ऐ जवानाँ नौ-बहाराँ में क़दह-नोशी करो
गुल-बदन साक़ी सेती हर शब हम-आग़ोशी करो