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ग़ज़ल
वो दिल का दर्द वो ना-गुफ़्तनी सुख़न 'ख़ुर्शीद'
ख़ुदा से कह लिया ख़ल्क़-ए-ख़ुदा से कौन कहे
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
ये क्या कि लाख सुख़न-हा-ए-ग़ुफ़्तनी हैं मगर
वो सामने हो तो फिर काम की ज़बाँ न समझ
मौलवी सय्यद मुमताज़ अली
ग़ज़ल
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
गुफ़्तनी बातें सही नाग़ुफ़्तनी बातें सही
चुप न बैठो कोई अफ़्साना यहाँ कहते रहो
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
ग़ज़ल
ग़मों से खेलते रहना कोई हँसी भी नहीं
न हो ये खेल तो फिर लुत्फ़-ए-ज़िंदगी भी नहीं