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ग़ज़ल
घर घर नचने नाच रहे हैं महानगर के तालों पर
गाँव के बारह-मासों में दम टूट गया मरदंगों का
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
वोहीं फिर दरबार-ए-शाह-ए-हिन्द में रख कर क़दम
नाचने गाने लगी हँस हँस ब-ज़ेबाई बसंत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बाद-ए-आज़ादी में हम सब नाचने वालों के साथ
फूल पहने रक़्स करती डालियाँ शामिल हुईं
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
रो ही देता हूँ जो याद आता है लंदन मुझ को
क्या हुए अब वो हसीं नाचने गाने वाले