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ग़ज़ल
वो दिन भी थे कि तेरे लम्स की नरमी के क़िस्से थे
बरहना सर पे तेरी ज़ुल्फ़ के साए की बातें थीं
अमित गोस्वामी
ग़ज़ल
नफ़्सी-नफ़्सी का है 'आलम सब हुए ना-आश्ना
महशर-ए-ज़ो'म-ए-ख़िरद में कौन किस का आश्ना
अबरार किरतपुरी
ग़ज़ल
पाँव में तारे बंध जाएँ तो दरिया दामन होगा
किन चाँदों का नूर चुरा कर सीना रौशन होगा
अरसलान राठोर
ग़ज़ल
बचा गर नाज़ से तो उस को फिर अंदाज़ से मारा
कोई अंदाज़ से मारा तो कोई नाज़ से मारा