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ग़ज़ल
मोहब्बत थी उसे लेकिन मिरा इफ़्लास जब देखा
परेशाँ सी नज़र आई वो नाज़ों की पली मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बड़े नाज़ों से दिल में जल्वा-ए-जानाना आता है
ये घर जिस ने बनाया है वो वो साहब-ख़ाना आता है
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
सजाया था जिसे पलकों पे नाज़ों से वही ख़्वाब
'सराहत' मेरी आँखों पर ज़रा सा बार भी था
सराहत अहमद सराहत
ग़ज़ल
अदा-ओ-नाज़ और अंदाज़ का शैदा न हो जाए
मिरा नाज़ों का पाला दिल कहीं उन का न हो जाए
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
जिन्हें नाज़ों से पाला हम ने आग़ोश-ए-मोहब्बत में
वही गिन गिन के बदले ऐ दिल-ए-नाकाम लेते हैं
ज़ेब बरैलवी
ग़ज़ल
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
मुझ से लाग़र तिरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझ से नाज़ुक मिरी नज़रों में समाते भी नहीं