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ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम-नफ़स-ओ-हबीब-ए-ख़ास बनते हैं ग़ैर किस तरह
बोली ये सर्द-मेहरी-ए-उम्र-ए-गुरेज़-पा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
सफ़र जारी है सदियों से हमारा नब्ज़-ए-आलम में
निगाहों से ज़माने की मगर रू-पोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
जूँ पंच-शाख़ा तू न जला उँगलियाँ तबीब
रख रख के नब्ज़-ए-आशिक़-ए-तफ़्ता-जिगर पे हाथ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तड़प कर शिद्दत-ए-ग़म से जब उन का नाम लेते हैं
ये वहशी नब्ज़-ए-रफ़्तार-ए-दो-'आलम थाम लेते हैं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
इसी तश्ख़ीस पर इतरा रहा था एक मुद्दत से
मसीहा देख नब्ज़-ए-बहर-ओ-बर कुछ और कहती है
याक़ूब उस्मानी
ग़ज़ल
शोले की जूँ मदद करे दूद-ए-नख़स्त-ए-ख़ार-ओ-ख़स
मिस्सी से और धुआँ हुईं होंटों की उस की लालियाँ