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ग़ज़ल
नफ़ी की साल्सी दरकार है जो फ़ैसला कर दे
कि हम अल्लाह-मियाँ वाले हैं या बुत-ख़ाने वाले हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
ऐ सालिक-ए-मज्ज़ूब ये है सैर-ए-मक़ामात
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
नफ़ी कर ज़ात की आतिर कि सौदा भी नफ़े का है
जो पाया वो ही अफ़ज़ल है जो खोया वो भी पहचाना
आतिर अली सय्यद
ग़ज़ल
इसबात नफ़ी हो कि नफ़ी हो इसबात
क्यूँ जाऊँ मैं अल्फ़ाज़ की गहराई में
अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
नफ़ी इसबात की शाग़िल जो क़लंदर हैं सो वो
अपनी गर्दन को नहीं करते हैं ख़म या माबूद