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ग़ज़ल
बात करने से भी नफ़रत हो गई दिलदार को
वाह-रे इज़हार-ए-उल्फ़त वाह-रे तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तिरे आगे तिरी बेदाद की शोहरत आई
ग़ैर को भी तो तिरी चाह से नफ़रत आई