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ग़ज़ल
हमारे दौर में अब नफ़सा-नफ़सी का ये आलम है
जनाज़े रोज़ उठते हैं मगर मातम नहीं होता
ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
ग़ज़ल
नफ़सा-नफ़सी का आलम है सब को अपनी फ़िक्र पड़ी
अपनी धरती अपना अम्बर अपना सूरज अपना चाँद