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ग़ज़ल
हमारा होश हर-दम आश्ना-ए-नहनो-अक़रब है
हुज़ूरी जिस को हासिल हो उसे यारब से क्या मतलब
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
नहनु-अक़रब की सदा देती है ख़ुद मंज़िल मिरी
अब न काबा राह में रोके न बुत-ख़ाना मुझे
शौक़ असर रामपुरी
ग़ज़ल
नहनो-अक़रब की नहीं है रम्ज़ से तू आश्ना
वर्ना वो नज़दीक है तू आप उस से दूर है