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ग़ज़ल
मैं उस महफ़िल को ठुकरा कर चला आया हूँ ऐ 'रहमत'
जहाँ महसूस की इख़्लास-ओ-उल्फ़त की कमी मैं ने
रहमत अमरोहवी
ग़ज़ल
इलाही नहर-ए-रहमत बह रही है इस में डलवा दे
गुनहगारों के इस्याँ बाँध कर दामान-ए-महशर में
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सोच रहा था ग़म-नसीब बिगड़ी बने तो किस तरह
रहमत-ओ-लुत्फ़-ए-किर्दगार बन गए आसरा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
फ़ज़ा पे नहर-ए-पुर-अफ़शान-ए-ताब हूर ओ तुहूर
ग़िना में शहर-ए-क़ूसूर-ओ-ख़याम है साक़ी
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फिर कोई ताज़ा बपा होने को है इक मा'रका
नहर-ए-फ़ुरात-ए-कर्बला को फिर से जारी कीजिए
नबील अहमद नबील
ग़ज़ल
वो मरी जान का दुश्मन कि सर-ए-नहर-ए-विसाल
सब को सैराब किया बस मुझे प्यासा रक्खा