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ग़ज़ल
क्यूँके नक़्काश-ए-अज़ल ने नक़्श अबरू का किया
काम है इक तेरे मुँह पर खींचना शमशीर का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
किस नक़्श-ए-क़दम पर है झुका रोज़-ए-अज़ल से
किस वहम में सज्दे से बयाबाँ नहीं उठता
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का
अनासिर के मुरक़्क़े में भरा है नक़्श दौलत का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
करिश्मे हैं कि नक़्काश-ए-अज़ल नैरंगियाँ तेरी
जहाँ में माइल-ए-रंग-ए-फ़ना हर नक़्श-ए-हस्ती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
'शौक़' सा बंदा-ए-आज़ाद ज़माने में कहाँ
आज सुनते हैं कि वो याद-ए-ख़ुदा करते हैं