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ग़ज़ल
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
बे-सम्त हवाओं ने हर लहर से साज़िश की
ख़्वाबों के जज़ीरे का नक़्शा भी नहीं बदला
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
क़स्र-ए-तन को यूँ ही बनवा ये बगूले 'नासिख़'
ख़ूब ही नक़्शा-ए-तामीर लिए फिरते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
गरचे है मेरी जुस्तुजू दैर ओ हरम की नक़्शा-बंद
मेरी फ़ुग़ाँ से रुस्तख़ेज़ काबा ओ सोमनात में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किया आईना-ख़ाने का वो नक़्शा तेरे जल्वे ने
करे जो परतव-ए-ख़ुर्शीद आलम शबनमिस्ताँ का