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ग़ज़ल
गिरे हम मिस्ल-ए-मूसा वादी-ए-उल्फ़त में ग़श खाकर
जमाल-ए-हक़ जो हुस्न-ए-क़ामत-ए-दिलदार में देखा
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
किया ईमान ताज़ा क़ामत-ए-दिलदार ने ऐसा
'सफ़ीर' अब हम भी इंकार-ए-क़यामत कर नहीं सकते
मोहम्मद अब्बास सफ़ीर
ग़ज़ल
लोट था दिल क़ामत-ए-दिलदार पर मुद्दत हुई
नख़्ल-ए-तूबा पर था अपना आशियाना याद है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
दिल देता हूँ मैं क़ामत-ए-दिल-दार को अपना
लटकाता हूँ मैं नख़्ल-ए-मोहब्बत में क़फ़स को
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
नज़ारा-हा-ए-दिलकश से गुज़र जाता था बेगाना
मगर ऐ क़ामत-ए-ज़ेबा तिरे दीदार से पहले
इफ़्तिख़ार शाहिद अबू साद
ग़ज़ल
उस ने हाल-ए-दिल-ए-नाशाद न देखा न सुना
ऐसा ज़ालिम सितम-ईजाद न देखा न सुना
फ़हीमुद्दीन अहमद फ़हीम
ग़ज़ल
किस के नक़्श-हा-ए-पा रहनुमा हुए 'आदिल'
रास्ते दरख़्शाँ हैं रात के अँधेरे में