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ग़ज़ल
हमें दा'वा था देखेंगे वो क्यूँकर याद आते हैं
रग-ए-जाँ बन गए हैं अब फ़ुज़ूँ-तर याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
ऐ नशा-ए-हिर्स-ए-रिफ़अत ख़ूब है चक्कर दिए
आसमाँ के साथ गर्दिश में है पैमाना मेरा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
मिरी रग रग में जानाँ भर गया है नश्शा-ए-क़ुरबत
उतर जाए तुम्हारे लम्स का जादू ज़रा ठहरो
हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
ग़ज़ल
नशा-ए-इश्क़ में सरशार हैं किस के उस के
मुंतज़िर आने के हर बार हैं किस के उस के
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
हर शय लम्हे की मेहमाँ है क्या गुल क्या ख़ुशबू
क्या मय क्या नश्शा-ए-आईना क्या आईना-रू
मंज़ूर आरिफ़
ग़ज़ल
इक ज़रा हो नशा-ए-हुस्न में अंदाज़-ए-ख़ुमार
इक झलक 'इश्क़ के अंजाम की आग़ाज़ तो दे