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ग़ज़ल
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
ग़ुंचे अपनी आवाज़ों में बिजली को पुकारा करते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
इसी दरिया से उठती है वो मौज-ए-तुंद-जौलाँ भी
नहंगों के नशेमन जिस से होते हैं तह-ओ-बाला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
बसने दो नशेमन को अपने फिर हम भी करेंगे सैर-ए-चमन
जब तक कि नशेमन उजड़ा है फूलों का नज़ारा कौन करे