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ग़ज़ल
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
मस्त नज़रों से अल्लाह बचाए मह-जमालों से अल्लह बचाए
हर बला सर पे आ जाए मेरी हुस्न वालों से अल्लह बचाए
अज्ञात
ग़ज़ल
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो
जिसे पूछो यही कहते हैं हम बेकार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
महशर का ख़ैर कुछ भी नतीजा हो ऐ 'अदम'
कुछ गुफ़्तुगू तो खुल के करेंगे ख़ुदा के साथ