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ग़ज़ल
किसी की आँख ने ख़्वाब-ए-तहय्युर तान रक्खा है
'नवेद' उस दाम-ए-यकताई में फँसना रह गया बाक़ी
अफ़ज़ाल नवेद
ग़ज़ल
ऐ 'नवेद' वक़्त के घाव से ये मोहब्बतों के अलाव से
जहाँ ज़ख़्म तुझ को मिले नया वहाँ मुस्कुरा उसे भूल जा
नवेद जाफ़री
ग़ज़ल
वतन के ग़म से दिल में हो कसक और ख़ून आँखों में
हमारे हक़ में क्या कम ये नवेद-ए-शादमानी है