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ग़ज़ल
किसी ने देखे हैं पतझड़ में फूल खिलते हुए
दिल अपनी ख़ुश-नज़री में दिवाना हो गया है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
न अब वो ख़ुश-नज़री है न ख़ुश-ख़िसाली है
ये क्या हुआ मुझे ये वज़्अ क्यूँ बना ली है