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ग़ज़ल
जहाँ 'इक़बाल' भी नज़्र-ए-ख़त-ए-तनसीख़ हो 'जालिब'
वहाँ तुझ को शिकायत है तिरा जौहर है ख़तरे में
हबीब जालिब
ग़ज़ल
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
उस्लूब-ए-नज़्म-ए-'अकबर' फ़ितरत से है क़रीं-तर
अल्फ़ाज़ हैं महल पर मा'नी मकान पर हैं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
वक़्त-ए-मुश्किल में भी होंटों पर हँसी अच्छी लगी
मेरे ख़ालिक़ को मिरी ये बंदगी अच्छी लगी
सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब
ग़ज़ल
कुछ तिरे नाज़-ओ-सितम और उठाना चाहे
दिल मिरा अक़्ल से फिर आँख चुराना चाहे
सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब
ग़ज़ल
नज़र 'इक़बाल' तेरी सोज़-ए-पिन्हाँ पर नहीं शायद
हुआ जाता है दिल जल कर कबाब आहिस्ता आहिस्ता
इक़बाल भारती
ग़ज़ल
नज़्म-ए-'अकबर' से बलाग़त सीख लें अर्बाब-ए-‘इश्क़
इस्तिलाहात-ए-जुनूँ में बे-बहा फ़रहंग है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जामा-ज़ेबों की नज़र भी दल्क़-ए-'अकबर' पर पड़ी
शान ही कुछ और थी उस ख़िर्क़ा-ए-पारीना की