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ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त से ओझल हैं मंज़िलें दिल की
हैं अपनी आख़िरी साँसों पे चाहतें दिल की
चित्रा भारद्वाज सुमन
ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त का कैफ़-ए-ख़ुमार क्या कहिए
बहार गोया है अंदर बहार क्या कहिए
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
उस निगाह-ए-मस्त से जब वज्द में आती हूँ मैं
कैफ़-ओ-रंग-ओ-नूर की दुनिया पे छा जाती हूँ मैं
नजमा तसद्दुक़
ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का सलाम आया तो क्या होगा
अगर फिर तर्क-ए-तौबा का पयाम आया तो क्या होगा
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
निगाह-ए-मस्त-ए-साक़ी का इशारा पा के पीता हूँ
हुदूद-ए-होश की मंज़िल से बाहर जा के पीता हूँ
अमीर देहलवी
ग़ज़ल
पीर-ए-मुग़ाँ शजीअ हो ज़र्फ़ भी जब वसीअ' हो
बादा-कश-ए-निगाह-ए-मस्त नश्शे में लड़खड़ाए क्यूँ
मख़मूर जालंधरी
ग़ज़ल
क्या ग़ज़ब है निगह-ए-मस्त-ए-मिस-ए-बादा-फ़रोश
शैख़ फ़ानी में हुआ रंग-ए-जवानी पैदा