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ग़ज़ल
नील मुसफ़्फ़ा आँखों से तकते थे जिस्म की चाँदनी को
फुलवारी पे नूर की पर्दे काँच के ताना करते थे
अरसलान राठोर
ग़ज़ल
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
दिल के दाग़ में सीसा है और ज़ख़्म-ए-जिगर में ताँबा है
इतना भारी सीना ले कर शख़्स आवारा फिरता है