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ग़ज़ल
दुख में नीर बहा देते थे सुख में हँसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
उन ही ज़ख़्मों ने हमें सौंपी कराहें ऐ 'कुँवर'
जिन के मुँह हम आँसुओं के नीर से धोते रहे
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
खोल के घूँघट के पट प्यार से करती है प्रणाम मुझे
भोर भए जब नीर भरन को वो पनघट पर आती है
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
वक़्त-ए-रुख़्सत वो जो पलकों में छुपाया तुम ने
दिल में अब तक भी जवाँ है उसी इक नीर का दुख
ज़र्रीं मुनव्वर
ग़ज़ल
कौन सुने सिंगार की बातें नैन की बोली समझे कौन
निर-मोही बिन तेरे कहानी कौन कहे अंगड़ाई की
तुफ़ैल होशियारपुरी
ग़ज़ल
नर्म कँवल सा अंग दुखों की झील में डूबा जाए
नीर की पीड़ा जागी तो वो और हुआ बेचैन
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बे-हिसी को तोड़ दे अब तो पिघल ऐ संग-दिल
कम से कम तू 'संत' की आँखों से छलका नीर देख