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ग़ज़ल
दख़्ल क्या राह-ए-मोहब्बत में निको-नामी को
आया इस कूचे में जो उन ने सुना क्या क्या कुछ
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
कभी होता हूँ ज़ाहिर जल्वा-ए-हुस्न-ए-निको हो कर
कभी ख़ातिर में छुप जाता हूँ तेरी आरज़ू हो कर
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
यक़ीं जिस का कलाम-ए-क़ुद्स अज्र-उल-मोहसिनीं पर हो
निको-कारी का उस की क़ाइल इक दिन कुल जहाँ होगा
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
रंग हवा से यूँ टपके है जैसे शराब चुवाते हैं
आगे हो मय-ख़ाने के निकलो अहद-ए-बादा-गुसाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दुनिया के नेक-ओ-बद से काम हम को 'नियाज़' कुछ नहीं
आप से जो गुज़र गया फिर उसे क्या जो हो सो हो