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ग़ज़ल
इक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद
हुस्न-ए-इंसाँ से निमट लूँ तो वहाँ तक देखूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
मिरे दिल में किसी हसरत के पस-अंदाज़ होने तक
निमट ही जाएगा कार-ए-जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
तू यहाँ ज़ेर-ए-उफ़ुक़ चंद घड़ी सुस्ता ले
मैं ज़रा दिन से निमट कर शब-ए-तार! आता हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
बात हम दोनों की है हम ख़ुद निमट लेंगे कभी
क्यों ज़माना बोलता है मेरे उस के दरमियाँ