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ग़ज़ल
तुम आज हाथों से दूरियाँ नापते हो सोचो
दिलों में किस दर्जा फ़ासला था वबा से पहले
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
सारे कामों को निप्टा कर आधी रात में सोई थी
भोर भए फिर उठ कर अम्मा ने दरवाज़ा खोल दिया
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
ग़ज़ल
ज़मीं का वक़्त से झगड़ा है ख़ुद निपटते रहेंगे
कहा है किस ने कि तुम उन के दरमियान में आओ
आफ़ताब इक़बाल शमीम
ग़ज़ल
अब देखिए क्या निबटे सीना है सिपर अपना
वो ख़ंजर-ए-मिज़्गाँ का ख़ूँ-ख़ार है और मैं हूँ
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
ग़ज़ल
अब आगे देखिए क्या निबटे उस के दरबाँ से
हम उस के पहुँचे हैं दर तक ख़ुदा ख़ुदा कर के
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
शिकन से लहजे की दिल में दराड़ पड़ती है
सो बे-रुख़ी तेरे माथे के बल से नापते हैं